अहिरवार ही क्षत्रीय
क्षत्रीय होने का प्रमाण
इतिहास, बही भाटों की पोथियों, अहिरवार के संस्कारों, अहिरवार की धार्मिक आस्था, अहिरवार के रीति रिवाज आदि दृष्टियों से अहिरवार का क्षत्रिय होना निम्नानुसार प्रमाणित होता है-
1. अहिरवार में विवाह के समय जनेऊ पहिनने की प्रथा है । क्षत्रियों में भी विवाह के समय जनेऊ पहनी जाती है । अहिरवार और क्षत्रिय के अलावा किसी भी जाति में यह प्रथा नहीं है ।
2. अहिरवार और क्षत्रीय अपनी भौजाई को मां के समान समझते हैं । विवाह संस्कार में बरात जब रवाना होती है तब अहिरवार तथा क्षत्रीयों में दुलहे को मां का स्तनपान कराने की प्रथा है । यदि मां जीवित नहीं है तो भौजाई का स्तनपान कराया जाता है । इससे स्पष्ट है कि इन दोनों जातियों में भौजाई को मां का दर्जा दिया गया है । अन्य जातियों में भाई की मृत्यु के बाद भौजाई को पत्नी बनाकर रखली जाती है ।
3. रिश्ता (सगाई) करने में जितने गोत्र क्षत्रिय टालते है उतने ही गौत्र अहिरवार भी टालते हैं । (दादा, दादी, नाना, नानी का गोत्र टालते है)
4. अहिरवार तथा क्षत्रीयों में सामूहिक विवाह की प्रथा नहीं थीं । एक घर में एक समय में एक ही मण्डप (चंवरी) बनता था । आज भी अन्य जातियों की तुलना में अहिरवार तथा क्षत्रीयों में सामूहिक विवाह कम होते हैं ।
5. अहिरवार समाज में सात फेरों से विवाह करने की प्रथा है । क्षत्रीय जाति में भी सात फेरों से विवाह करते हैं । अहिरवार में भी क्षत्रीयों की तरह चार फेरों में दुलहन आगे रहती है तथा बाद के तीन फेरों में दुल्हा आगे रहता है ।
6. क्षत्रीयों में विवाह ब्राह्मण करवाता है । अहिरवार समाज में भी विवाह गौड़ ब्राह्मण करवाते है । अनुसुचित जातियों में एक मात्र अहिरवार समाज ही ऐसी जाति है जिसमें गौड़ ब्राह्मण जाकर विवाह करवाते हैं जबकि अन्य किसी अनुसुचित जाति के विवाह में ब्राह्मण नहीं जाते हैं ।
7. अहिरवार के भाट कहते भी हैं कि यदि अहिरवार शुरू से ही निम्न कर्म करने वाली जाति होती तो हम अहिरवार का कभी नहीं मांगते । उनकी पोथियों से भी प्रमाणित है कि प्रारम्भ में इस जाति के कर्म उच्च थे जो कालान्तर में किन्ही परिस्थितियों के कारण निम्न कर्म अपना लिये ।
8. बही भाटों की पोथियों में अहिरवार झूझारों का गौरवशाली विस्तृत वर्णन देखने से प्रमाणिक रूप से कहा जा सकता है कि अहिरवार क्षत्रियों की तरह ही वीर और बहादुर कौम रही है । क्षत्रियों की तरह अहिरवार आज भी जीवन में आत्म स्वाभिमान को सर्वोच्च स्थान देता है ।
9. पुराने जमाने जब यातायात के साधन नहीं थे उस समय अहिरवार भी क्षत्रीयों की तरह घोड़ा-घोड़ी पालते थे । क्षत्रीय और अहिरवार सूबर (प्रसव) घोड़ी पर नहीं चढ़ते थे और आज भी इस धर्म का पालन करते हैं ।
10. आज भी अहिरवार के संस्कार क्षत्रियों के समान है ।
11. तवा नदी के तट पर स्थित चंवरदल महल भी इसका प्रमाण है कि अहिरवार क्षत्रीय हैं ।
इन तमाम तथ्यों के आधार पर प्रमाणिक रूप से कहा जा सकता है कि अहिरवार क्षत्रिय हैं । जाति व्यवस्था मनुष्य की मानसिक संकीर्णता की परिचालक है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी जातियाँ समान हैं। इसलिए भारत में आज क्षत्रिय को भी अहिरवार के घर वोट मांगने जाना पड़ता है । वर्तमान समय में अनुसुचित जातियों के मत ही निर्णयक मत हैं। इसलिए अहिरवार अनुसुचित जातियों की सुविधाओं से वंचित होकर क्षत्रियों का सामाजिक दर्जा लेना नहीं चाहते हैं। अहिरवार समाज अन्य अनुसुचित जातियों के साथ रह कर ही अपना सर्वांगिण विकास करना चाहती है।
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