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Showing posts from July, 2016

हम हो गये अहसान फरामोश

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चौ.अमान सिंह नरवरिया आप कहेगें की , यह क्या कह रहे हो । मैं सच कह रहा हूँ , यह उन लोगों के लिए हैं । जो बाबा साहेब डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के संघर्ष से मिले , अधिकार और आरक्षण के लाभ को मजे से खा रहे हैं । लेकिन बदले मे , बाबा साहेब के लिए कुछ नही कर रहे हैं । बाबा साहेब ने अपने परिवार व जान की परवाह किये बिना , कड़े विरोध व संघर्ष के बाद हमे यह अधिकार व आरक्षण दिला पाये । उनके संघर्ष को हम , केवल इसी बात से समझ सकते है कि , वे एक काबिल बेरिस्टर होने के बाद भी , अपने द्वितीय पुत्र गंगाधर की मृत्यु पर , उनके जेब मे कफन के भी पैसे नही थे । कफन का कपड़ा , पत्नी ने साड़ी मे से टुकड़ा फाड़ कर दिया ।        इस बात से , उनकी गरीबी का अन्दाजा लगाया जा सकता है । इतनी गरीबी मे भी उन्होने समाज के पिछड़ो के अधिकारों की लड़ाई लड़ते हुए कहा कि ‘‘ आप मुझे लोहे के खम्बे से बांध दिजीये , मै अपने लोगों के हकों के साथ समझौते नही कर सकता ’’ ।        इतने बडे़ संघर्ष का परिणाम है कि , आप और हम सम्मान से जी रहे हैं । आज भी करोड़ो ऐसे लोग है , जो बा...

दलित मूवमेंट और सामाजिक संगठन

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        राजेश कुमार अहिरवार आज हम दलित मूवमेन्ट पर विचार कर रहे है जिसके लिए बाबा साहेब ने अपना पूरा जीवन न्योछावर कर लिया , दलित मूवमेन्ट जिसका प्रत्यक्ष , अप्रत्यक्ष प्रभाव हमारे जीवन में दिन-प्रतिदिन पड़ता है । यदि इसे अच्छी तरह समझना है तो हमें हमारी जाति आधारित व्यवस्था तथा आवरण से बाहर निकलना होगा , तभी हम इसे अच्छी तरह समझ पायेंगे ।        वर्तमान परिस्थितियों पर नजर डाले तो सबसे ज्‍वलंत मुद्दा पदोन्नती में आरक्षण है । ज्योंही आरक्षण या ऐसे किसी फायदे की बात आती है तो हम सब एक हो जाते है , लेकिन फायदा मिल जाने के बाद , जितना ज्यादा बिखराव दलित आदिवासी समाज मे दिखता है , वैसा किसी अन्य समाज में नही दिखाई देता है । दलित वर्ग अनेक जातिगत ( अहिरवार, मैघवाल , बैरवा , रैगर , बलाई , कोली , धोबी , अनेक जातियो ) व्यवस्था में बंटा हुआ है , और उसमे भी उपजातिय विभाजन नजर आता है ।        बाबा साहेब ने कहा था कि दलित चाहे लाख सर पटक लें , जब तक वो एक साथ नही आयेंगे , तब तक इस समाज का भला नही हो सकता । डॉ. अम्...

भारतीय संविधान दुनिया में श्रेष्ठ

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एड. शकुन्तला अहिरवार डॉ. अम्बेडकर के अनुसार संविधान शासन की सभी शाखाओं पर नियन्त्रण रखने के लिए सिर्फ यन्त्र रचना है । यह किसी सदस्य या दल को सत्ता में बैठाने की यन्त्र रचना नहीं है । शासन की क्या नीति होनी चाहिए ?, सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से समाज का क्या गठन होना चाहिए ?, ये वे मुद्दे है जो समय और परिस्थितियों को देखते हुए जनता को स्‍वयं तय करने हैं । यह प्रावधान संविधान में नही रखा जा सकता है , क्योंकि ऐसा करने से लोकतन्त्र ध्वस्त हो जायेगा ।        किसी देश की व्यवस्था में संविधान की क्या भूमिका हो ?, यह सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है । भारतीय संविधान की श्रेष्ठता पर विचार करें , तो हमें उन देशों के संविधान को समझना होगा , जो अपनी शासन व्यवस्था व आर्थिक विकास के बल दुनिया मे सर्वश्रेष्ठ और महाशक्ति बने हुए है , इसमें निर्विरोध रूप से , यदि किसी देश का नाम सामने आता है तो , वह संयुक्त राज्य अमेरिका है ।        अमेरिका मे अध्यक्षीय शासन पद्धति प्रचलित हैं , जबकि हमारे भारत देश में पार्लियामेंट पद्धति है , दोनों पद्धतियां मूलत...

सरोजनी नायडू और बाबा साहव अम्बेडकर

आज हम हिन्दुस्तान के दो महान् व्यक्तित्व पर चर्चा करने जा रहे है जिसमे भारत की कोकिला ( द नाइटएंगल ऑफ इण्डिया ) कही जाने वाली कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष , उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला राज्यपाल , स्वंतन्त्रता सेनानी , महान कवयित्री सरोजिनी नायडू जिनका जन्म 13 फरवरी 1879 को हुआ , इसी महान कवयित्री के जन्मदिन को महिला दिवस के रूप मे मनाया जाता है ।        आज हम उस दौर की बात कर रहे है जब डॉ. अम्बेडकर 25 अप्रैल , 1948 को उत्तर प्रदेश शिड्यूल कास्ट्स फैडरेशन के अधिवेशन में भाग लेने के लिये रेलवे सैलून के द्वारा लखनऊ गए थे । ( बाबा साहेब भारत भर में अक्सर अपनी यात्रा रेलवे सैलून के द्वारा ही करते थे ताकि वे अपनी यात्रा का अधिकतम समय किताबें पढ़ने के लिये उपयोग कर सके ) उस समय उत्तर प्रदेश की गर्वनर कोकिला सरोजिनी नायडू थीं । वह बाबा साहेब को लेने स्टेशन पर आयीं और बाबा साहेब से कहा-   डाक्टर साहब में आपको राजभवन ले जाने आयीं हूँ । आप मेरे निमंत्रण को स्वीकार करें ।        बाबा साहेब - बहन , मैं यात्रा के समय रेलवे सैलून...

संविधान निर्माता और संविधान

15 अगस्त सन् 1947 को भारत विदेशी दासता से मुक्त हुआ और स्वतंत्र राष्ट्र होने पर डाक्टर बाबू राजेन्द प्रसाद को सबसे पहले भारत का राष्ट्रपति बनाया गया । जबकि पंडित जवाहर लाल नेहरू को प्रधानमंत्री पद कि शपथ दिलाई गयी । अपने मंत्री मंडल में सरदार वल्लभ भाई पटेल जो लोह पुरूष के नाम से जाने जाते थे , उन्हें गृह मंत्री बनाया ।        डॉ. भीमराव अम्बेडकर को पंडित नेहरू ने ऊँचे से ऊँचे पद कानून व विधि मंत्रालय का पद दिया । जबकि डॉ. अम्बेडकर विपक्ष के नेता थे , फिर भी नेहरू जी ने उनका सम्मान किया । स्वतंत्र भारत में वे पहले कानून मंत्री बनाये गये । राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का कहना था कि भारत को नया संविधान बनाना चाहिए क्‍योंकि आजाद भारत को नये सविधान की जरूरत थी , जिसके अनुसार राष्ट्र का शासन चलाया जा सके । इस मुद्दे पर विभिन्न नेताओं के विचार इस प्रकार थे - 1.   पंडित जवाहर लाल नेहरू जो प्रधान मंत्री थे , वे चाहते थे किसी अंग्रेज (विदेशी) से संविधान निर्माण कराया जाए जो अनूठा हो । 2.  नेहरू जी ने राष्ट्रपति महात्मा गाँधी से विचार किया , तब उ...

बाबा साहेब से किनारा करते अफसर

दिन-महीने-साल बिते , समय बदला , और बदल भी रहा है , लेकिन इसमे यदि कुछ नही बदला तो वह है , दलितों का उत्पीड़न । कुछ तो इस समस्या से कागजी छुटकारा पाना चाहते है , इसलिए अब कहने लगे है कि , दलित शब्द का उपयोग बंद किया जाना चाहिये , ऐसा कहने वाले उच्च जाति के लोगों के साथ-साथ हमारे दलित भाई , जो आरक्षण के कोटे से बड़े अफसर बने बैठे है , वे भी शामिल है । दलित अफसरों को अब दलित कहलाने मे शर्म आती है । इसलिये वे दलित शब्द के साथ-साथ डॉ. अम्बेडकर से भी किनारा करने लगे है , इसका कोई स्थायी समाधान नही करना चाहते है । चाहते है तो , बस इतना कि , इसका कोई ऐसा हल निकले कि , ‘‘ ना रहें बांस और ना बजे बांसुरी ’’ अर्थात् वे चाहते है कि , जो शब्द (दलित) पिछले 100 वर्षो से भी अधिक वर्षो से प्रचलित है । उसे मिटा दिया जाय और एक नयी परिभाषा बनायी जाये ताकि दलित वर्गो मे फूट पैदा कि जा सके , ओर आने वाले 100 वर्षो तक उलझाया रखा जा सके ।        जब-जब इस वर्ग की समस्या हल करने की बात आती है , काम कम किया जाता है , और दिखावा ज्यादा किया जाता है । स्थिति आज भी वैसे ही है , जैसी कि प...