बाबा साहेब से किनारा करते अफसर
दिन-महीने-साल बिते, समय बदला, और बदल भी रहा है, लेकिन इसमे यदि कुछ नही बदला तो वह है, दलितों का उत्पीड़न । कुछ तो इस समस्या से कागजी
छुटकारा पाना चाहते है, इसलिए अब कहने लगे है कि, दलित शब्द का उपयोग बंद किया जाना चाहिये, ऐसा कहने वाले उच्च जाति के लोगों के साथ-साथ हमारे दलित भाई, जो आरक्षण के कोटे से बड़े अफसर बने बैठे है, वे भी शामिल है । दलित अफसरों को अब दलित
कहलाने मे शर्म आती है । इसलिये वे दलित शब्द के साथ-साथ डॉ. अम्बेडकर से भी
किनारा करने लगे है, इसका कोई स्थायी समाधान नही करना चाहते है । चाहते है तो, बस इतना कि, इसका कोई ऐसा हल निकले कि, ‘‘ना रहें बांस और ना बजे बांसुरी’’ अर्थात् वे चाहते है कि, जो शब्द (दलित) पिछले 100 वर्षो से भी अधिक वर्षो से प्रचलित है । उसे मिटा दिया जाय और एक नयी परिभाषा
बनायी जाये ताकि दलित वर्गो मे फूट पैदा कि जा सके, ओर आने वाले 100 वर्षो तक उलझाया रखा जा सके ।
जब-जब इस वर्ग
की समस्या हल करने की बात आती है, काम कम किया जाता है, और दिखावा ज्यादा किया जाता है । स्थिति आज भी वैसे ही है, जैसी कि पिछले सैकड़ों वर्षो से चली आ रही है । कुछ बदलाव आया है, वह भी शहरी आबादी क्षेत्रों मे है । जिसका भी मूल कारण डॉ. अम्बेडकर द्वारा
संविधान में दलितो व वंचितो का दिये गये अधिकार है । गांवों मे तो आज भी हालात वही
है, बदलाव केवल कागजी दिखावा है ।
आज भी ऐसी
स्थिति है कि, शोषण तो होता है, लेकिन शोषण का तरीका बदल गया है, हाल ही में पिछले दिनों एन.सी.आर.टी. की कक्षा 11 की किताब जिसमें डॉ. अम्बेडकर पर बनाया गया कार्टून, जिसमे जवाहर लाल नेहरू द्वारा चाबूक मारते हुआ दिखाया जा रहा है । प्रश्न यह
उठता है कि, जिस किसी ने भी यह कार्टून बनाया है, यह तो स्पष्ट नजर आता है कि, उसकी डॉ. अम्बेडकर के प्रति सम्मान की भावना तो कतई नही रही होगी । जब डॉ.
अम्बेडकर पर बनाया गया कार्टून तो बनाने वाले के खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज नही किया
गया लेकिन जब दलित पत्रकार सत्येन्द्र मुरली ने गाँधी पर कार्टून बनाया तो उसके
खिलाफ तुरन्त कार्यवाही करते हुए जयपुर पुलिस ने एफ. आई. आर. दर्ज कर ली । यह शोषण
नही तो क्या है ।
वैसे आपकी
जानकारी के लिये यह बताना चाहूंगा कि मैं गणित, विज्ञान, भौतिकी का विधार्थी रहा
हूँ और आज भी अध्ययन कर रहा हूँ, परन्तु पिछले चार वर्षो से अम्बेडकर जी व अन्य
महापुरूषों को पढ़ रहा हू । जितनी भी किताबें, जहॉ तक मैने पढ़ी है, आज तक के अध्ययन मे जब भी मैं पिछे मुड़कर देखता हूँ तो पाता हूँ कि, डॉ. अम्बेडकर अपने समय के बेहतरीन अर्थशास्त्री रहे, उन्होने इस पर पी.एच.डी. की तथा अपने समय के एक मात्र पी.एच.डी. होल्डर
व्यक्ति थे, और उन्होने अपने शोधपत्र मे ब्रिटिश सरकार के द्वारा भारत के आर्थिक शोषण की
नंगी तस्वीर दुनिया के सामने रखी । यह एक ऐतिहासिक दस्तावेज है, इनके इस शोध पत्र को कई वर्षो तक भारतीय विधानसभा तथा केन्द्रीयसभा के
प्रत्येक सदस्य ने बजट सम्बन्धी बहस के दौरान इस पुस्तक से मदद ली । डॉ. अम्बेडकर
को कोलम्बिया विश्वविधालय, न्यूयार्क, अमेरिका, द्वारा दुनिया मे आज तक पैदा हुए अर्थशास्त्रीयो मे प्रथम नम्बर पर रखा तथा
उन्हे सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्री के सम्मान से भी सम्मानित किया ।
आज यह विडम्बना
है कि, अर्थशास्त्र की किताब मे जो डॉ.अम्बेडकर के विचार से भरी होनी चाहिये । वहॉ
स्थिति इतनी विपरित है कि, शायद ही कही उनके कोटेशन देखने को मिले । ठीक ऐसी ही स्थिति कानून की शिक्षा के मामले मे भी है । इस क्षेत्र मे भी डॉ.
अम्बेडकर बैरिस्टर तथा डॉक्टरेट रहे तथा कानून के बेहतरीन विद्धान व संविधान
विशेषज्ञ रहे । देश मे आज तक कानून के विद्धान और संविधान विशेषज्ञ के रूप मे डॉ.
अम्बेडकर जैसा व्यक्ति पैदा नही हुआ । जिस व्यक्ति ने अपने बलबूते पर दुनिया के
सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश के लिए, दुनिया का सबसे बड़ा संविधान लिखा हो । जो अनेक
विषयों का प्रखण्ड विद्धान रहा हो । जिसका पूरी दुनिया ने लोहा माना हो । जब भारत
मे कानून कि किताबों का अध्ययन किया जाता है तो डॉ. अम्बेडकर के कोटेशन, विचार कही देखने को नही मिलते जबकि इसके विपरित दुनिया के दुसरे देशों मे
कानून की किताबों मे डॉ. अम्बेडकर के कोटेशन, विचार कई जगह देखने को मिलते हैं । उनके द्वारा
कही हुई बातें आज भी प्रासंगिक है । जहॉ राजीव गॉधी, मेनका गॉधी, इन्दिरा गॉधी, पण्डित नेहरू, महात्मा गॉधी के कोटेशन अर्थशास्त्र तथा कानून
की किताबों मे अनेक मिल जायेगें, वहॉ डॉ. अम्बेडकर के विचारों की बात करे तो हम
पाते है कि, शायद ही कही अपवाद स्वरूप उनका कोटेशन देखने को मिले । जिस व्यक्ति ने 18 किताबों की रचना की हो और भारत के संविधान का निर्माता रहा हो, ऐसा प्रख्यात समाजशास्त्री, चिन्तक, समाज-सुधारक, कानून का विद्धान, अर्थशास्त्री रहा हो, उनके विचारों को भारत के स्वर्ण जाति के तथाकथित इतिहासकारों तथा लेखकों ने
ऐसे इग्नोर (किनारा) किया है कि, जैसे कि वे भारत मे जन्म ही नही हुआ हो । केवल
इसलिए कि वह दलित है । ऐसी स्थिती मे इन तथाकथित विद्धान कहे जाने वाले लेखकों की
बात करे, तो ऐसा लगता है कि, यह लेखक नहीं, तथा तथाकथित स्वार्थी लोग है, जो या तो किसी के इशारे पर इतिहास शास्त्रों को
लिखते हैं या फिर किसी दुरभावना से प्रेरित है । वैसे डॉ. अम्बेडकर को किसी लेखक
या इतिहासकारी के कलम की आवश्यकता नही है, जो उनके बारे मे लिखे ।
लेकिन प्रश्न यह
उठता है कि, इसमे देश के उन बच्चों, भावी पीढ़ी का क्या दोष है, जो अपने देश के सच्चे इतिहास को जानना चाहती है
। यह तथाकथित लेखक और इतिहासकार डॉ. अम्बेडकर के साथ नही, इस देश की भावी पीढ़ी के साथ भी धोखा कर रहे हैं । जिसका दुष्प्रभाव, आज इस देश मे समय के साथ-साथ स्पष्ट नजर आ रहा है, और आता रहेगा । पिछले कई वर्षों से एक शब्द पिछड़े व वंचितो के बीच बोला जाने
लगा है ‘‘जय भीम, जय भीम, जय भीम’’ यह उनका मजबूती दबंगता का सूचक है । जिसके आगे चलकर दुरगामी परिणाम होगे । यह
शब्द एक अजीब सी ताकत वंचित समाज के बोलने वाले (जय भीम) व्यक्तियों को देता है ।
जिस पर और अधिक बल देने की आवश्यकता है ।
आज देश, राज्य या जिला तहसील स्तर का नेतृत्व हो उसमे डॉ.अम्बेडकर का फोटो लगाने का
प्रचलन बढ़ा है, केवल वोट मांगने के लिए, लेकिन डॉ. अम्बेडकर का नाम अपने मुहॅ से बोलने
मे आज भी सत्तारूढ व विपक्षी पार्टिया किनारा करती नजर आती है । आज देश की इस
वर्तमान व्यवस्था मे, जो योगदान डॉ. अम्बेडकर द्वारा दिया गया है, उसके मुकाबले किसी का भी नही, और आज भी उनके बनाये कानून पर हम चलते है, और चलते रहेंगे । लेकिन फिर भी उन्हे इग्नोर
किये जाने का सिलसिला जारी है । जब-जब अधिकारों के हनन की बात आती है, संविधान व डॉ. अम्बेडकर की दुहाई दी जाती है, लेकिन सम्मान देने की बात हो तो, डॉ. अम्बेडकर का नाम भूल जाते है । जैसे कि 26 जनवरी को प्रधानमंत्री द्वारा डॉ. अम्बेडकर को
आज तक इग्नोर किया जा रहा है, जबकि 26 जनवरी डॉ. अम्बेडकर द्वारा निर्मित संविधान के
लागू होने के कारण मनाते है । आज स्थिती ऐसी है कि संविधान की बात तो सभी करते है
लेकिन संविधान निर्माता डॉ. अम्बेडकर को भूल जाते है । यह सिलसिला तोड़ना होगा । हर
कदम पर डॉ. अम्बेडकर को इग्नोर करने का सिलसीला जारी है, चाहे किताबें हो या टी.वी. चेनल या सरकारी योजना या रास्ते के नाम सब जगह, आज भी पिछले सैकड़ों साल से चल रहा भेदभाव जारी है ।
इसे बदलने के
लिये हमे जय भीम के नारे को प्रत्येक दलित, आदिवासी, पिछडे़ तक पहुँचाना होगा तभी इस व्यवस्था में
सुधार संभव है ।
‘‘जय भीम’’, ‘‘जय भीम’’,‘‘जय भीम’’,‘‘जय भीम’’,‘‘जय भीम’’,‘‘जय भीम’’,‘‘जय भीम’’,‘‘जय भीम’’,‘‘जय भीम’’
Jai bheem
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