प्रथम गोलमेज सम्मेलन मे बाबा साहेब
आज हम उस दौर की
बात कर रहे है जिसमें डॉ. अम्बेडकर द्वारा प्रथम गोलमेज सम्मेलन 1930 में दिये गये भाषण की ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने प्रंशसा की
तथा ’’ दी इंडियन डेली मेल ‘‘ ने डॉ. अम्बेडकर के भाषण को सम्पूर्ण सम्मेलन का सर्वोतम भाषण बताया तथा
अंग्रेजी समाचार पत्रों ने भी डॉ. अम्बेडकर के भाषण को प्रमुखता से छापा था,
डॉ. अम्बेडकर के भाषण की खास विशेषता रही की उनकी वाणी में एक मात्र थी , वक्तव्य नही जिसमें धुआँ का नाम नही , लपलपाती सुर्ख लपटे थी ।
इससे प्रभावित होकर ब्रिटिश प्रधानमंत्री ‘रैम्जे‘ मैकडोनाल्ड, डॉ. अम्बेडकर के तर्को, उनकी व्याख्या और स्पष्ट अभिव्यक्ति के प्रंशसक हो गए । गांधी जी के प्रति उनका सम्मोहन मिट सा गया था ।
द्वितिय गोलमेज सम्मेलन 1931 मे जब गांधी जी ने यह कहा की कांग्रेस ही सम्पूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करती है तथा वह अछूतों का भी प्रतिनिधित्व करती है, उसी समय तपाक से डॉ. अम्बेडकर ने गांधी जी की बात को काटते हुए स्पष्ट शब्दों मे कहा की ‘कांग्रेस और गांधी का यह दावा कि वे मुझसे ज्यादा दलितों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो एकदम झूठा और गलत है ।’ यह तमाम उन झूठें बयानो मे से एक है जो अक्सर गैर जिम्मेदार लोग देते है । मिस्टर चेयरमेन, मैं भारत के सम्पूर्ण अछूतों का प्रतिनिधित्व करता हॅूं । इतना कहते ही पूरा सदन हक्का-बक्का रह गया, पूरे सदन मे डॉ. अम्बेडकर की आवाज देर तक गूंजती रही ।
अंत मे द्वितिय गोलमेज सम्मेलन के चेयरमेन, ब्रिटिश प्रधानमंत्री ‘रैम्जे‘ मैकडोनाल्ड, ने डॉ. अम्बेडकर को उनकी शानदार पैरवी के लिए धन्यवाद दिया और कहा की उन्होने अपने वक्तव्य से सारी स्थिति स्पष्ट कर दी जिसमे सन्देह की कोई गुंजाईश नही रही ।
इसी का परिणाम था कि अंग्रेज सरकार द्वारा घोषित साम्प्रदायिक पंचाट में दलितो के लिए जो अधिकारो की मांग डॉ. अम्बेडकर द्वारा रखी गई उसे उसी रूप मे स्वीकार कर लिया गया । जिसके विरूद्ध गांधी जी ने अनशन किया परिणामस्वरूप पूना पेक्ट समझोता हुआ ।
द्वितिय गोलमेज सम्मेलन के समापन अवसर पर ब्रिटेन के सम्राट जार्ज पंचम ने एक पार्टी का आयोजन किया जिसमे सभी राजनेता मेहमान शरीक हुए इसमे डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने ब्रिटेन के सम्राट जार्ज पंचम से बातचीत करते हुए उनके प्रश्नों का उत्तर दिया । दूर से गांधी जी नंगे सिर, लंगोटी लगाए और चप्पल पहने हुए इस दृश्य को देख रहे थे कि सम्राट जार्ज पंचम भीमराव अम्बेडकर के प्रति गहरी दिलचस्पी लेने लगे है ।
भीमराव अम्बेडकर ने अछूतों की अति दयनीय और भंयकर उपेक्षित स्थिति का वर्णन जिन शब्दों और जिस ढंग से किया, उससे सम्राट जार्ज पंचम का हदय दहल गया था । उनकी ऑंखों में लाली उतर आई थी । उनके अधर कॉप गए थे ।
‘क्या अछूत सिर पर मैला उठाकर चलते हैं? ‘
‘जी हॉं, सम्राट!‘
‘क्या उन्हें अछूत होने के लिए अपनी पहचान रखना जरूरी है?‘ जार्ज पंचम ने प्रश्न किया ।
जी , सम्राट!‘
‘वे हिन्दू हैं?‘ साश्चर्य जार्ज पंचम ने पूछा ।
‘जी हॉं सम्राट , वे हिंदू हैं ‘ लेकिन वे उनके मंदिरों में नहीं जा सकते, उनके तालाब, कुओं आदि से पानी नहीं भर सकते , उनकी किसी चीजो को नहीं छू सकते ‘ भीमराव अम्बेडकर ने धीरे - धीरे बताया ।
‘क्यों ?‘ जार्ज पंचम का मुहॅ खुला रह गया ।
क्योकि वे अछूत हैं ........... मैं भी उनमें से एक हूँ - भीमराव अम्बेडकर ने कहा ।
‘आप तो विद्वान है.... आपका यहॉ बहुत नाम हुआ है । हमारे लोगों ने आपको डाक्टर अम्बेडकर, बहुत पसंद किया है । फिर भी....!‘ जार्ज पंचम आगे कहते -कहते रूक गए । वे सोचने लगे ।
मैं भी अछूतों मे से हूँ । आपकी सरकार कुछ करे , उनको भी जीने का हक मिले , यह प्रार्थना लेकर मैं आया हॅू ।‘ भीमराव अम्बेडकर ने भारी स्वर में कहा ।
‘श्योर.....श्योर.....डाक्टर......अम्बेडकर !‘ जार्ज पंचम ने सहानुभूतिपूर्ण स्वर में कहा और फिर वे अन्य अतिथियों से घिर गए ।
डॉ. अम्बेडकर के भाषण की खास विशेषता रही की उनकी वाणी में एक मात्र थी , वक्तव्य नही जिसमें धुआँ का नाम नही , लपलपाती सुर्ख लपटे थी ।
इससे प्रभावित होकर ब्रिटिश प्रधानमंत्री ‘रैम्जे‘ मैकडोनाल्ड, डॉ. अम्बेडकर के तर्को, उनकी व्याख्या और स्पष्ट अभिव्यक्ति के प्रंशसक हो गए । गांधी जी के प्रति उनका सम्मोहन मिट सा गया था ।
द्वितिय गोलमेज सम्मेलन 1931 मे जब गांधी जी ने यह कहा की कांग्रेस ही सम्पूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करती है तथा वह अछूतों का भी प्रतिनिधित्व करती है, उसी समय तपाक से डॉ. अम्बेडकर ने गांधी जी की बात को काटते हुए स्पष्ट शब्दों मे कहा की ‘कांग्रेस और गांधी का यह दावा कि वे मुझसे ज्यादा दलितों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो एकदम झूठा और गलत है ।’ यह तमाम उन झूठें बयानो मे से एक है जो अक्सर गैर जिम्मेदार लोग देते है । मिस्टर चेयरमेन, मैं भारत के सम्पूर्ण अछूतों का प्रतिनिधित्व करता हॅूं । इतना कहते ही पूरा सदन हक्का-बक्का रह गया, पूरे सदन मे डॉ. अम्बेडकर की आवाज देर तक गूंजती रही ।
अंत मे द्वितिय गोलमेज सम्मेलन के चेयरमेन, ब्रिटिश प्रधानमंत्री ‘रैम्जे‘ मैकडोनाल्ड, ने डॉ. अम्बेडकर को उनकी शानदार पैरवी के लिए धन्यवाद दिया और कहा की उन्होने अपने वक्तव्य से सारी स्थिति स्पष्ट कर दी जिसमे सन्देह की कोई गुंजाईश नही रही ।
इसी का परिणाम था कि अंग्रेज सरकार द्वारा घोषित साम्प्रदायिक पंचाट में दलितो के लिए जो अधिकारो की मांग डॉ. अम्बेडकर द्वारा रखी गई उसे उसी रूप मे स्वीकार कर लिया गया । जिसके विरूद्ध गांधी जी ने अनशन किया परिणामस्वरूप पूना पेक्ट समझोता हुआ ।
द्वितिय गोलमेज सम्मेलन के समापन अवसर पर ब्रिटेन के सम्राट जार्ज पंचम ने एक पार्टी का आयोजन किया जिसमे सभी राजनेता मेहमान शरीक हुए इसमे डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने ब्रिटेन के सम्राट जार्ज पंचम से बातचीत करते हुए उनके प्रश्नों का उत्तर दिया । दूर से गांधी जी नंगे सिर, लंगोटी लगाए और चप्पल पहने हुए इस दृश्य को देख रहे थे कि सम्राट जार्ज पंचम भीमराव अम्बेडकर के प्रति गहरी दिलचस्पी लेने लगे है ।
भीमराव अम्बेडकर ने अछूतों की अति दयनीय और भंयकर उपेक्षित स्थिति का वर्णन जिन शब्दों और जिस ढंग से किया, उससे सम्राट जार्ज पंचम का हदय दहल गया था । उनकी ऑंखों में लाली उतर आई थी । उनके अधर कॉप गए थे ।
‘क्या अछूत सिर पर मैला उठाकर चलते हैं? ‘
‘जी हॉं, सम्राट!‘
‘क्या उन्हें अछूत होने के लिए अपनी पहचान रखना जरूरी है?‘ जार्ज पंचम ने प्रश्न किया ।
जी , सम्राट!‘
‘वे हिन्दू हैं?‘ साश्चर्य जार्ज पंचम ने पूछा ।
‘जी हॉं सम्राट , वे हिंदू हैं ‘ लेकिन वे उनके मंदिरों में नहीं जा सकते, उनके तालाब, कुओं आदि से पानी नहीं भर सकते , उनकी किसी चीजो को नहीं छू सकते ‘ भीमराव अम्बेडकर ने धीरे - धीरे बताया ।
‘क्यों ?‘ जार्ज पंचम का मुहॅ खुला रह गया ।
क्योकि वे अछूत हैं ........... मैं भी उनमें से एक हूँ - भीमराव अम्बेडकर ने कहा ।
‘आप तो विद्वान है.... आपका यहॉ बहुत नाम हुआ है । हमारे लोगों ने आपको डाक्टर अम्बेडकर, बहुत पसंद किया है । फिर भी....!‘ जार्ज पंचम आगे कहते -कहते रूक गए । वे सोचने लगे ।
मैं भी अछूतों मे से हूँ । आपकी सरकार कुछ करे , उनको भी जीने का हक मिले , यह प्रार्थना लेकर मैं आया हॅू ।‘ भीमराव अम्बेडकर ने भारी स्वर में कहा ।
‘श्योर.....श्योर.....डाक्टर......अम्बेडकर !‘ जार्ज पंचम ने सहानुभूतिपूर्ण स्वर में कहा और फिर वे अन्य अतिथियों से घिर गए ।
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