हम हो गये अहसान फरामोश


चौ.अमान सिंह नरवरिया
आप कहेगें की
, यह क्या कह रहे हो । मैं सच कह रहा हूँ, यह उन लोगों के लिए हैं । जो बाबा साहेब डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के संघर्ष से मिले, अधिकार और आरक्षण के लाभ को मजे से खा रहे हैं । लेकिन बदले मे, बाबा साहेब के लिए कुछ नही कर रहे हैं । बाबा साहेब ने अपने परिवार व जान की परवाह किये बिना, कड़े विरोध व संघर्ष के बाद हमे यह अधिकार व आरक्षण दिला पाये । उनके संघर्ष को हम, केवल इसी बात से समझ सकते है कि, वे एक काबिल बेरिस्टर होने के बाद भी, अपने द्वितीय पुत्र गंगाधर की मृत्यु पर, उनके जेब मे कफन के भी पैसे नही थे । कफन का कपड़ा, पत्नी ने साड़ी मे से टुकड़ा फाड़ कर दिया ।
       इस बात से, उनकी गरीबी का अन्दाजा लगाया जा सकता है । इतनी गरीबी मे भी उन्होने समाज के पिछड़ो के अधिकारों की लड़ाई लड़ते हुए कहा कि ‘‘आप मुझे लोहे के खम्बे से बांध दिजीये, मै अपने लोगों के हकों के साथ समझौते नही कर सकता’’
       इतने बडे़ संघर्ष का परिणाम है कि, आप और हम सम्मान से जी रहे हैं । आज भी करोड़ो ऐसे लोग है, जो बाबा साहेब की कड़ी मेहनत से कमायी गयी रोटी को, मुफ्त मे, मजे से खा रहे है । उन्हे इस बात का अन्दाजा नही है कि, उन्हे जो पावर और पैसा मिला है, वो उनकी अक्ल और होशियारी का नही है, यह बाबा साहेब के संघर्ष का परिणाम है ।
       बाबा साहेब को जो करना था, वह कर गये, लेकिन हमे जो करना है, वो हम नही कर रहे है । आज मुफ्त की रोटी खाने वालों, की संख्या करोड़ों मे है, जबकि बाबा साहेब के कारवें को आगे बढ़ाने वालो की संख्या हजारों मे है ।
       बाबा साहेब ने अपनी आने वाली पीढ़ी के लिये, संघर्ष इसलिये किया की, उनकी भावी पीढ़ी, उनके कारवें को आगे बढ़ायेगी और अपने समाज के पिछड़े लोगों की मदद कर, उन्हे साथ लेकर चलेगी तथा उन्हे भी अपना हक दिलायेगी ।
       आज बाबा साहेब का मुफ्त मे माल खाने वाले आज बाबा साहेब को भूल गये है ऐसे लोगों को अहसान फरामोश ना कहे तो ओर क्या कहें ।
       मैं यह नही कहता कि, सभी ऐसे है, लेकिन यह सच है कि, अधिकतर ऐसे ही है । यदि ऐसा नही होता तो, हमारा समाज आज पिछड़ा नही होता । उनके पिछड़ेपन के लिये, इसी समाज के उच्च शिक्षित, डॉक्टर, इन्जिनियर, वकील, आर.ए.एस., आई.ए.एस. जिम्मेदार है । आज जिसे नोकरी मिली पैसा, पावर मिला, वो आज समाज व बाबा साहेब से दुरी बनाये हुये है । जबकि बाबा साहेब के संघर्ष के कारण ही, वे बंगलों मे रहते हैं, बड़ी-बड़ी महंगी-मंहगी गाड़ियों मे घुमते है । इनके बच्चे पब्लिक स्कूल मे पढ़ते है, बड़े बच्चे विदेशों मे उच्च शिक्षण संस्थाओं मे अध्ययन कर, वही बस रहे है । उनकी इस हाई प्रोफाईल पीढ़ी को, आज भी यह नही पता है कि, आज वे जो भी है, वह बाबा साहेब की देन है ।
       आज जिस समाज की वजह से, वे अफसर बने बैठे है, अपने ही लोगों से कन्नी काट रहे है । अपने आप को वे, समाज से ऊॅचा समझ रहे है । उन्हे जो आरक्षण मिला, जिसकी वजह से, जो कभी उनके सीनियर अफसर होते थे, वे आज, पदोन्नति मे आरक्षण की वजह से, जूनियर कर्मचारी बन गये है । इन्हे मिले जल्दी-जल्दी प्रमोशन ने, इन्हे कई-कई तो शेतान बना दिया है । यह लोग अपनी सफलता का श्रैय भगवान, माता-पिता, अपने अक्ल होशियारी को देते है, जबकि वास्तविकता, यह बाबा साहेब के संघर्ष की बदोलत है ।
       आजकल आमतोर पर यह देखने को मिलता है कि, जिस आरक्षण की वजह से, एक सामान्य वर्ग के सरकारी कर्मचारी को, अपने सम्पूर्ण सर्विस काल मे, एक या दो प्रमोशन ही मिलते है, जबकि वही आरक्षित वर्ग के कर्मचारी को चार से पांच प्रमोशन मिलते है । क्या यह भगवान, माता-पिता, उनकी अक्ल होशियारी की देन है, नही यह बाबा साहेब की देन है । तो फिर एक शिक्षित व्यक्ति अपने असली भगवान बाबा साहेब डॉ. बी.आर. अम्बेडकर को क्यो नही पहचानता । आप ही बताऐ, ऐसे व्यक्ति को क्या कहें मूर्ख या अहसान फरामोश ।
       सम्पूर्ण जीवनकाल मे अधिकतर समय बाबा साहेब की आर्थिक स्थिति अत्यन्त दयनीय थी, तो उन्हे कई बार परिवार, समाज व साथियों ने सलाह दी कि, आप सरकारी नोकरी क्यो नही कर लेते । तो वे कहते थे कि, यह केवल मेरी पीड़ा नही है, यह मेरे 7 करोड़ लोगों की पीड़ा है । मैने सरकारी नोकरी कर ली तो, मेरे 7 करोड़ भाई-बहनो के अधिकारों व हको की लड़ाई का क्या होगा । इसलिए उन्होने अपने जीवन मे नोकरी से हमेशा दुरी बनाये रखी और अपने लोगों के हक अधिकार के लिए हमेशा लड़ते रहे ।
       आज ऐसे सरकारी नोकरों की लम्बी फोज है जो, आरक्षण से मिली नोकरी व प्रमोशन से मिले पावर का दुरूपयोग करके, करोड़ों रूपये की धन-सम्पदा के मालिक बने बैठे है । जिनके माता-पिता स्‍वयं कभी चौकीदार व मजदूर हुआ करते थे, आजकल उनके बंगलो के बाहर चौकीदार, मजदूर तथा छोटे-मोटे ऑफीसर हाजिरी मे खडे़ नजर आते है । वे अपने पावर और पैसे के नशे मे स्वार्थी बने बैठे है । अपने पराये को भूल गये है, देश-विदेश घूमना, विलासितापूर्ण जिन्दगी जीना उनकी आदत बन गयी है । आज वे अपने समाज के प्रति कर्तव्य को भूल गये है ।
       आज वे समाज को सन्देश देते है कि हमे फलाना-फलाना कार्य करना चाहिये, इनकी बाते केवल अच्छे-अच्छे भाषणों तक सीमित हो गयी है । पता नहीं किस दुनिया मे जी रहे है । वे कभी यह नही सोचते है कि, जिस समाज के वजूद की वजह से, वे अफसर बने बैठे है, वो समाज आज गरीबी, अशिक्षा, पिछड़ेपन, असहाय, साधनविहिन जैसी गम्भीर सामाजिक बीमारीयों से ग्रसित है, उसे कौन छुटकारा दिलायेगा । इसके लिए उन्हे अपने अन्दर मनन कर, सोचना चाहीये कि स्वयं क्या हैं । बाते ना कर, कुछ करके दिखाना चाहीये ।

       बाबा साहेब सोचते थे कि, यह अफसर, अपने समाज को लड़ने कि हिम्मत व साधन उपलब्ध करायेंगे । जबकि सच्चाई यह है कि, ये सरकारी पावर का दुरूपयोग कर धन कमाने मे लगे हुऐ हैं । अपने स्वार्थो कि पूर्ति, उनका एक मात्र उदेश्य रह गया है । ऐसे लोगों को क्या कहें, आप ही बताऐ ।

-सुनील कुमार बामने

Comments

  1. Replies
    1. Thanks for your response to
      Write it's

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  2. You are right sir
    Jai bheem jai bharat

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  3. सर मैं हूं दिलीप अहिरवार ग्राम भरेड तहसील पचोर जिला राजगढ़ मध्य प्रदेश ब्यावरा

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