अंधविश्वास जाग रहे समाज सो रहा
एक गरीब आदमी कड़ी मेहनत, मजदुरी कर के पाई-पाई जमा करता है ताकि उसके
बाल बच्चों का लालन-पालन अच्छे से अच्छा हो । ऐसी सोच हर मां-बाप की होती है ।
लेकिन कई बार हालात ऐसे खेडे़ हो जाते है कि करें भी तो क्या करें ? वह समाज की
रिति-रिवाजों के समाने बेबस है उसकी हालात दो टाइम की रोटी तक भी सीमित नही । ऐसी
हालात में वह क्या कर सकता है ? अंधविश्वास, कुरीतियां, भ्रांतियां, रूढ़िवाद, इत्यादि के सामने लाचार है । अब आप ही बताओं
क्या सही और क्या गलत है ? इन रिति-रिवाजों
का शिकार तो हम सब होतें है लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान तो गरीब व्यक्ति को ही उठाना
पड़ता है । अमीर वर्ग तो अपनी शान शौकत के लिए ऐसा करता है लेकिन गरीब अपनी इज्जत
बचाने के लिए ऐसा करता है । जी हां अब मैं बात कर रहा हूं अहिरवार समाज में फैल
रही भ्रांतिया, अंधविश्वास, कुरीतियां, रूढ़िवाद, इत्यादि की ।
आपने देखा होगा की हमारे समाज में मरने के उपरान्त मृत्यु भोज की परम्परा चली आ
रही है । दुसरी तरह ऐसे मौके पर लेन देन का मामला अलग से मतलब चारो तहफ से खर्चा
ही खर्चा और मजे की बात देखियें गंगा पूजन समारोह के बाद में शराब के प्याले देनी
की प्रथा एक तरफ तो आप गंगा पूजन समारोह मना रहे हो और दुसरी तरफ शराब के प्यालें
चल रहें है फिर बताओं गंगा पूजन करने का क्या मतलब हुआ । माना आज के परिवेश में कई
जगह इसका विरोध भी हुआ और सुधार भी परन्तु कई गांवो में आज भी यह प्रथा जीवित है ।
इसके इलाज के लिए कोई ठोस कदम नही उठा पा रहे है । मेरा मानना है कि ऐसा प्रथा के
लिए विचार-विमर्श करना चाहिए या फिर जड़ से ही उखाड कर फेंक देना चाहिए । हमारे
समाज में और भी कई कुरीतियां है जैसे विवाह, जन्मोत्सव, गंगा पूजन, इत्यादि के शुभ अवसर पर देखने को मिलता है कि
लड़की जब पहली बार पीला ओडती है तब पीहर पक्ष की ओर से देने वाली भारी रकम का ।
समाज में अपनी इज्जत के लिए गरीब व्यक्ति ग्यारह, इक्कीस, इक्तीस, इक्यावन हजार इत्यादि का कई से इंतजाम करे के
रस्म पूरी करता है । ऐसी हालात में उस पर कर्ज का बोझ होना तो वाजिब है । इस कर्ज
की वजह से ही उसकी संतान को अच्छी शिक्षा से वंचित होना पड़ता है । कई गांवो में
ऐसी भी प्रथा कि एक सौ एक या ग्यारासो या फिर जो नियम बना रखा उस के मुताबिक इतने
ही लेगें और इतने ही देगें परन्तु सब के सामने तो वे लोग ऐसा ही करते है पर विदा
होते समय बहुत कुछ देकर आते जबकि ऐसा नही होना चाहिए या तो नियम बनाओं मत और बनाते
होतो उसका पालन भी पूरी ईमानदारी से करो । अगर समाज में इन कुरीतियों पर कोई दण्ड
स्वरूप नियम बनें तो कम से कम एक गरीब व्यक्ति की तो हालात सुधर सकती है । उसके
बच्चो की देखभाल अच्छे से हो सकती है और उसके बच्चों का शिक्षा का स्तर भी बढ़
सकेगा । सबसे बड़ी बात कर्ज लेने से बचना । कहते है कि व्यक्ति को कर्जा ही डुबाता
है । हमारे समाज में आज भी गांवो में बालिका शिक्षा का अभाव देखने को मिलता है
उसका कारण है गरीबी, बालिका के विवाह
के लिए या अन्य कोई काम के लिए, कम उम्र की बालिकाओं को गलिचे जैसे कार्य पर
भेजना । कम उम्र मे कार्य करने का मतलब है बीमारी का शिकार होना जिसमें कामने से
ज्यादा उसकी बिमारी पर खर्च हो जाता है । आगे हम बात कर रहे है समाज में युवा वर्ग
की हमारे समाज का युवा वर्ग आज गलत भ्रांतिया का शिकार होता जा रहा है उसका कारण
साफ है कि आज का युवा समाज की गतिविधियों को भूल कर चकाचौंध से आकर्षित वातावरण
में खो गया है । युवा वर्ग को आगें आना चाहिए और अंधविश्वास, कुरीतियां, भ्रांतिया, रूढिवाद, इत्यादि के लिए
बीडा उठानी चाहिए । मानते है कि बड़ों के आर्शिवाद के बिना कुछ नही हो सकता इसलिए
बड़ो से प्ररेणा लें उनके बताये गयें मार्ग पर चलें । आज के परिवेश को देखते हुए
हमारे समाज को ओर भी जाग्रित करना है और इस कार्य कें लिए युवा वर्ग आगे आना होगा
। अहिरवार समाज में आज भी जाग रहे है और समाज सो रहा है । और भी कई गोपनीय
भ्रांतिया, अंधविश्वास, कुरितियां हो
सकती है । अतः आपसे मेरा अनुरोध है कि अहिरवार समाज में कही पर भी घटना परिघटना
अत्याचार शोषण होता है या हो रहा है तो उसके खिलाफ आवाज उडानी चाहिए और अपने समाज
के अधिकारी, समाजसेवी, बुद्विजीवी, वकील, पत्रकार, युवा-नेता, राजनेता, संस्था, समिति, इत्यादि को अवगत
करना चाहिए । जिससे यह लोग उनके खिलाफ कार्यवाई कर सकें । ऐसी बात नही कि ये लोग
आपकी मदद नही करेगे अगर आप इनको अवगत कराओगें तो यह लोग आपकी मदद अवश्य करेगें ।
मुझे आशा ही नही पुर्ण विश्वास है । और समाज से यह उम्मीद रखता हू कि समाज में
भाई चारे की भावना कायम रहें जिससे समाज में सौहार्दपुर्ण वातावरण बना रहे ।
समाजिक सरोकारो से समाज का विकास भी होता है । फिर मै यहां पर एक बात और कहना
चाहूगा कि समाज में अंधविश्वास, कुरीतियां तब खत्म हो सकती है जब साक्षरता का
स्तर सुधरेगा तो अपने आप ही समाज में बदलाव आयेगा और हमको गांवो में बालिका शिक्षा
पर जोर देना होगा । एक लड़की अपना तो जीवन सुधारती है ही साथ में दो घरों की जिंदगी
भी सुधारती है । शिक्षत लड़की बेटी, बहु, मां, सास के रूप में आती है तो जाहिर है कि घर, परिवार, समाज में प्रेम
सौहार्द की भावना रहती है ।
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