समाज को ठगने के प्रयास में नेता
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सुनील कुमार बामने |
एक बार फिर वह मौसम आ गया है । मैं बात सर्दी के मौसम की नही, चुनावी मौसम की
कर रहा हूँ । राजस्थान सरकार भी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अपनी नीतियॉ जनता के
लिए बना रही है । बेरोजगारो को नोकरी दी जा रही है, नोकरी वाले को पदोन्नती, सरकार कि लाखों
नोकरीयॉ अदालतों, लालफिताशाही के
चक्कर मे अटकी पड़ी है । पदोन्नति किसी को मिल गई है, किसी की रोक दी गई है, किसी की होने
वाली है । लग ऐसा रहा है कि, सरकार भी दिवाली मना रही है, ऐसा दिखाया जा
रहा है, लेकिन
वस्तुस्थिति यह है कि हजारों अध्यापक 55 प्रतिशत टेट के अंक और अन्य कानूनी पचड़े मे
फंसे पड़े है । सरकारी कर्मचारियों को भी दिया, कम जा रहा है और दिखाया, ज्यादा जा रहा
है, यह तो बात थी
सरकार की ।
अब बात करते हैं अपने मूल बिन्दु की, जिस पर हम आपको
कुछ वास्तविक जानकारी देने चाहेगे और उन लोगों को आयना बताना चाहेगे, जो समाज को ठगने
के प्रयास मे नेता बने बैठे है, और कुछ नेता बनने के प्रयास मे है ।
वास्तविकता पर नजर डाले तो सामाजिक संस्थाऐं, समाज के विकास
की घूरी होती है, जब ये धूरी काम
करना बन्द कर देती है तो, ऐसी स्थिति मे
फिर उत्पति होती है, कुछ नये
समाजसेवी लोगों की, जो वास्तव मे
समाज की सेवा करना चाहते है । और कुछ ऐसे लोगों जो इस बात के इन्तजार मे बैठे है, कि ये सामाजिक
संस्थाऐ कब निष्क्रिय हो और तब हम नयी संस्थाऐ बनाये ।
ऐसी स्थिति मे विरोधी गुट के नेत्तृव को खड़ा
करने के लिए, वर्तमान
संस्थाओं से असन्तुष्ट, अपने आपको
समाजसेवी कहने वाले लोग भी शामिल हो जाते है । यह वे लोग है जो वर्तमान संस्थाओं
के गलत निर्णय के कारण यदा कदा संस्थाओं के प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर के पदों पर
रह चुके है । जिन्हे जनाधार नही होने के कारण हटा दिया गया है । किसी भी व्यक्ति
की प्रदेश स्तर की नियुक्ति के लिए जरूरी है कि, उसका अपने जिले मे जनाधार हो । जो जिले का
अध्यक्ष नही रहा है, उसे
प्रदेशाध्यक्ष कैसे बनाया जा सकता है । यदि बना भी दिया जाये तो भी, उसकी हैसियत का
आंकलन किया जाना चाहिये, कि उसने अपने
समाज के लिए, क्या त्याग किया
है ? उसकी व्यक्तिगत
हैसियत क्या है ?, इसका समाज मे कोई अर्थ नही है । यदि कोई सरकारी कर्मचारी है तो, उसके द्वारा 58 या 60 वर्ष की उम्र मे
समाजसेवा की बात करना बेमानी है, क्योकि उन्हे यह तो बताना ही पड़ेगा की पिछले 58 वर्षो से, वे कहा थे, जो आज सामाजिक
संस्थाओं के पदों के लिए लालायत हो रहे है । वे लोग जो 58 वर्ष की उम्र मे
समाज मे अपनी भूमिका तलासते है तो, उन्हे यह भूमिका केवल सरकार की नोकरी के चलते
नही दी जा सकती, जबकि सरकार उसे
अपने मकहमे से बाहर निकालने की तैयारी कर रही है, ओर वह सामाजिक संस्थाओं पर अपना बोझ मुफ्त मे
डालना चाहते है जबकि उसके पास न तो जनाधार है, ना ही दानदाता का आधार है, ना ही त्याग, जबकि यह
समाजसेवा की मूल कसोटी है । यही बात चाहे युवा मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष हो या अन्य
कोई, उन पर भी लागू
होती है । किसी भी ऐसे व्यक्ति कि नियुक्ती, बिना आंकलन किये, संस्थाओं के लिए बहुत घातक है, और इससे केवल
विरोधी तैयार होते है, इससे ज्यादा कुछ
नही ।
ऐसे लोग, जो वास्तव मे समाज की सेवा करना चाहते है, को समाज मे
तथाकथित राजनेता बने लोग, अपनी हवा हवाई
बातों से जैसे विधायक, सांसद, जिला प्रमुख, मैयर, चेयरमेन, जैसे पदों का
हवाला देकर, ऐसे सच्चे समाजसेवी
लोगों को हाईजेक कर देते है । उन्हे खुद भी पता नही लगता की, वे किस बहाव के
साथ बह रहे है, उन्हे इसका
अन्देशा भी नही रहता है ।
वर्तमान मे जैसे-जैसे चुनावी समय नजदीक आ रहा
है, वैसे-वैसे समाज
के राजनेता बनने के लिए भी, लोग बिल से बाहर
आ रहे है । वे लोग अपना वास्तविक जनाधार तो बना नही पायें क्योंकि वे कभी
समाजसेवी रहे ही नही, तो जनाधार कहा
से आऐगा । स्थिति ऐसी है कि चुनाव आते ही, वे समाज को इकट्ठा करने कि बात कर रहे है ।
इसमे वे लोग भी शामिल है, जिसका पिछले कई
सालों से समाजसेवा से कोई लेना-देना नही रहा । केवल अपने आपको नेता, विधायक बनाने के
चक्कर मे समाज के कुछ अच्छी छवी के कार्यकर्ताओं को शामिल कर, उनकी छवी को
अपने हितों के लिए उपयोग करने मे जुट गये है, और समाज मे एक नयी चेतना जागृत करने का प्रयास
कर रहे है । अभी तक उन्हें ये पुछने वाला कोई नही मिला, कि पिछले इतने
वर्षों से आप कहा थे । आपका जन्म अचानक राजनैतिक चुनाव मे कैसे हो गया और समाज की
याद कैसे आ रही है, क्योकि बिना
समाज के इनका कोई वजूद नही है । यह सभी लोग अच्छी तरह समझते है और अब यह ‘‘बरसाती समाजसेवी’’ समाज को बिना
कुछ दिये, बिना त्याग के
ही समाज के वोट बैंक का उपयोग, अपने स्वार्थ के लिए करना चाहते है और अपने
आपको उनका नेता बनाना चाहते है । जो वोट बैंक के सोदे से ज्यादा कुछ नही । ऐसे
लोगों की समाज और राजनैतिक पार्टियो मे क्या हैसियत होगी, आप और हम अच्छी
तरह जानते है । ऐसे लोगो समाज को अपने फायदे के लिये, ठगने के प्रयास
मे लगे हुए है । जो एक धोके से ज्यादा कुछ नही है ।
समाज को भी ऐसे लोगो का समर्थन नही करना चाहिये, जो अपने स्वार्थ
पूर्ति के लिए समाज के सम्मेलन, एकजुटता, विकास की बात करते है । उन्हे यह पूछना चाहिये
कि इतने दिन कहा थे, यह समाज और इनकी
संस्थाऐ तो यही थी । इसमे कुछ अच्छी छवि वाले समाजसेवी भी ठगे जा रहे है । उन्हे
भी इसका अहसास नही हो रहा है । ऐसे लोग, जो समाज के विकास की बात करते है, उनके पिछले
इतिहास और कारनामों पर नजर डाले तो पता चलता है कि, उनमे व्यावहारिकता का गुण भी नही है । उनमे यदि
विशेष गुण मौजूद है तो वह है कि, अपने ही लोगो के साथ धोखा करना, ठगना, उनको ठाल बनाकर, अपने नीजी
स्वार्थपूर्ति के लिए उपयोग केसे किया जाए ।
तो फिर प्रश्न उठता है कि हमे और हमारी
संस्थाओं को क्या करना चाहिये, हमे हमारे बीच मे ही वर्षों से कार्यरत सामाजिक
कार्यकताओ को राजनीति के मेदान मे आगे लाया जाना चाहिये । चाहे वो हमारा निजी
विरोधी ही क्यों न हो । हमारा निजी विरोध किसी से हो सकता है, लेकिन समाजसेवा
करने वाले का समाज विरोधी नही होता है । जिससे समाज को सच्चे समाजसेवी नेता मिलेगे, जो प्रत्येक
उतार-चढाव पर समाज के साथ खड़े रहते है । जिसका उदाहरण हमारे सामने है - गुर्जर
आरक्षण जिसमे क्या विधायक, पूर्व विधायक, मन्त्री हो या
सन्त्री, सभी मूसतेदी के
साथ समाज की सेवा मे खड़े है, अपने-अपने मोर्चे पर । हमे ऐसे लोगो को राजनीति
मे आगे लाना होगा । तभी हमारे अधिकार सुरक्षित रहेगे और हमारा विकास भी मजबूती के
साथ होगा । जहॉ तक, अच्छे भाषण देने
की बात है, तो इसके लिए
बहुत साफ है कि, भाषणों से पेट
नही भरता है । ऐसे भाषण जो केवल सुनने मे अच्छे लगते हो , जिस पर केवल
तालीयॉ बजायी जा सकती, यह कोई सिनेमा
हॉल नही है, ना ही हम दर्शक
है । ऐसे लोगो को स्वयं अपने त्याग को पहले निर्धारित चाहिये, उन्हे अपने
अन्दर झांकना चाहिये कि, जो वे बोल रहे
है, क्या वे स्वयं
उन पर चलते है । यदि हॉ तो चलकर उदाहरण प्रस्तुत करे । यदि नही तो, अपने भाषणों को
अपने पास रखे, हमारी भावी पीढ़ी
मे यह दुष्प्रभाव पैदा ना करे, कुछ करके दिखाये । हमे यह नही भूलना चाहिये कि, हमने समाज को
क्या दिया है, ताकि हम इस समाज
मे पैदा होने के ऋण के कुछ हिस्से को चुका सके, अन्यथा ऐसा ना हो कि, हम कर्जदार ही
मर जाये । जो किसी श्राप से कम नही है ।
उन सभी लोगो को मेरा सन्देश है कि, जो अपनी उम्र के
अन्तिम पड़ाव मे है, यह मंथन करे कि, उन्होने इस समाज
मे पैदा होकर समाज को क्या दिया है ? अपने दुनिया छोड़ने से पहले से कुछ ऐसा कर जाये, जिसे आपकी आने
वाली पीढ़ी, सलाम कर सके ।
क्योंकि जो आप और हम नही कर पाये, उसकी उम्मीद आने वाली पीढ़ी से करना मूर्खता है
।
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