सामाजिक बदलाव का दौर
जैसे-जैसे समय गुजर रहा है, वैसे-वैसे इस देश के सामाजिक परिवेश में बदलाव
भी आ रहे हैं । कही मानसिक-भावात्मक तो कही तकनीकी-सामाजिक ।
वास्तविक परिस्थितियों पर चर्चा करे तो, सम्पूर्ण भारत
के सभी क्षेत्रों के साथ - साथ, मध्यप्रदेश में भी में
बदलाव आ रहे हैं, कुछ लोग तो स्वत
ही, तो कुछ
परिस्थितियों वश और अवसरवादी के कारण बदल रहे हैं ।
वास्तविकता की बात करे तो, 1991 में जब से उदारीकरण
का दौर चला है, तब से इस देश
में तेजी से तकनीकी बदलाव आया है, जिसके कारण सामाजिक परिवेश भी अछूता नही रहा है, नतिजा सामाजिक
पिछड़ापन भी कम हुआ है । दुनिया छोटी हो गयी है और ऐसा लग भी रहा है सोशल मीडीया
में फेसबुक, वाट्सएप आदि का जमाना आ गया है । जिसकी पहुच घर-घर तक हो गयी है ।
इस बदलाव ने कई विषयों व बिन्दुओं पर अपना
प्रभाव डाला है, जिसके कारण
बदलाव कई रूपो में नजर आता है । आज लोगों की मनोदशा भी बदली है, जिसमें चाहे
मुख्य कारण तकनीकी रहा हो या अवसरवादी या परिस्थितियॉ, बदलाव जरूर हो
रहा है ।
इसका परिणाम है कि, जिस देश में
केवल सांमती शासन हुआ करते थे, वहॉ आज लोकतंत्र अपनी जड़े जमा रहा है । इसी का
परिणाम है कि इस देश के तीन चौथाई मुख्यमंत्री पिछड़े वर्गों से आते हैं । मण्डल
कमिशन के बाद, पिछले 20 सालों में इनका
राजनैतिक प्रभाव बहुत तेजी से बढा है । 20 साल पूर्व कि बात करे तो, जब मीडिया
द्वारा महानतम भारतीय की खोज की गई तो, उसमें प्रथम 100 भारतीय में भी बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर को जगह
नही दी गई । अब यह स्थिति है कि सी.एन.एन.आई.बी.एन. चेनल के सर्वे अगस्त 2012 में बाबा साहेब
बी.आर.अम्बेडकर को ग्रेटेस्ट इण्डिया माना गया है ।
आज इसी बदलाव का परिणाम है कि, जिस उत्तर
प्रदेश में दलितों को ऊंची जाति वालों के सामने बेठने तक की इजाजत नही थी, वहा एक दलित की
बेटी बहन मायावती, मुख्यमंत्री बन
सकी । वो भी पूर्ण बहुमत के साथ ।
जिस संयुक्त निर्वाचन प्रणाली में केवल दलाल और
एजेण्ट पैदा होते हैं उसी निर्वाचन प्रणाली में चाहे मनोनित ही हो । इस देश में
दलित राष्ट्रपति के. आर. नारायणन रामनाथ कोविंद, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, पी.ए. संगमा, लोकसभा में सदन
के नेता और गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, देश के उपप्रधान मंत्री जगजीवन राम, सुप्रीम कोर्ट
के मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्ण, राजस्थान मुख्यमंत्री के सचिव निरंजन आर्य, जैसे-व्यक्ति
हमें दिये है ।
आज यह बात तो आम है कि, प्रत्येक राज्य
के मंत्रिमंडल में और देश की केबिनेट में दलित आदिवासीयों का प्रतिनिधि जरूरी हो गया
है । भले ही हो उनका वास्तविक प्रतिनिधि न हो, क्योंकि उनका मनोनयन जनता ने नही, बल्कि पार्टी
प्रमुख ने किया है । लेकिन नाम मात्र का प्रतिनिधि तो है ।
हाल ही में राजस्थान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत
द्वारा दिये गये बयान, जिसमें उन्होने
कहा की स्वर्ण जातियों से, जब सत्ता का
पावर पिछड़ी जातियों में हस्तान्तरीत हुआ है तो, उन्हे इसका हस्तान्तरण दलित व आदीवासीयों को
करना चाहिये और हाथ पकड़कर ऊपर उठाना चाहिये । आरक्षण पर उन्होने कहा की आरक्षण कोई
भीख नही, यह उनका अधिकार
है, वे इस देश के
मालिक है ।
गुर्जर आरक्षण भले ही गहलोत सरकार नही दे पा
रही हो क्योंकि यह उसके अधिकार क्षेत्र में नही है, लेकिन, उसके द्वारा किये प्रयास अच्छे रहे हैं । दलित
आदीवासी आरक्षण के लिए कई बार सरकार मजबूती के साथ पेरवी करती नजर आई है । चाहे वो
भटनागर कमेंटी कि रिर्पोट को सुप्रीम कोर्ट में पेश करना हो या पदोन्नति में
आरक्षण देना हो ।
जातिवादी भावना पर भी, उन्होने कहा की, वोट के कारण ही
छुआछुत का प्रत्येक व्यक्ति कम से कम, राजनेता खुलाकर विरोद्व नही करता है इससे
हमेंशा बचता नजर आता है । बाबा साहेब द्वारा वोट इस देश में आम नागरीक को दी, वो ताकत है, जिसका बाजार भाव
चाहे सोनिया गांधी का वोट हो या किसी झोपड़पटी में रहने वाली महिला का वोट, मत पेटी में एक
ही भाव में पड़ता है ।
ऊंच-नीच छुआछुत पर बयान देते हुए कहा कि, छुआछुत, मानवता पर कंलक
है और आज भी, दलित आदिवासियों
के मोहल्ले अलग-अलग बने हुए है । मींटिगों में हरिजनों को दरी पर नही बैठने दिया
जाता है । एक अलग कोने में बैठाया जाता है । आज भी गांवो में दलित आदिवासी दूल्हों
को घोड़े पर बैठने से रोका जाता है ।
कुछ वर्ष पीछे जाते हुए, बोलते है कि, उस जमाने में जब
सांमतों का राज था, तब ठाकुर साहब
की हवेली के बाहर से जूते पहनकर नही निकल सकते थे । जूता माथे पर रखना पड़ता था ।
नाथद्वारा के मंदिर में दलितों के प्रवेश, रोकने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी को
जाना पड़ा था, वो भी समय था और
कहा कि मुहॅ खोले खाप पंचायतो को भी बंद करना होगा, देश संविधान और कानून से ही चलेगा ।
यह बदलाव का दौर है और कही-कही पिछड़े समाज से
सम्बन्ध रखने वाले मुख्यमंत्री का दर्द भी है, जो वे बयान कर रहे है । यही प्रतिनिधित्व है ।
जो हमारा होगा, हमारी बात करेगा
।
आज ऐसी स्थिति है कि जातिवादी भावनाओं के कारण
लोगों को अपने लड़कों के लिए लड़किया नही मिल पा रही है उनकी खरीद-फिरोत हो रही है ।
यह बदलाव दौर है, इसके लिए हमें, अपने आपको बदलना
होगा, तभी दुनिया में
वास्तविक-प्रमाणिक बदलाव आ पाऐगा ।
सुनील कुमार बामने 24.06.2016
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