महिला शोषण - निजात कौन दिलाएगा

सुनील कुमार बामने
 समाज में महिलाएँ माँ शक्ति का जीवित रूप है । सदियों से महिला पुरुष से घर,परिवार और समाज में संयम, सहनशीलता, संवेदना, सूझबूझ और मानवीय गुणों में अग्रणी रही है । इतिहास सैकड़ों नारियों के बलिदान की गाथाओँ से भरा पड़ा है । नर पर नारी भारी है । अतः उसने अपना दायरा बढ़ाया, घर-परिवार के साथ-साथ समाज, शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान, कला, संस्कृति, धर्म, अर्थ और राजनीति में महिलाओँ की संख्या बढ़ी है । यह आधी आबादी के मान-सम्मान और कुशलता के विकास का शुभ संकेत है । वर्तमान में महिलाएँ पंचायतों, नगर-परिषदों, विधानसभाओं, और संसद में अपनी क्षमताओँ से अच्छा कार्य कर रही है । किंतु आज भी विडम्बनाएँ हमें ठेंगा दिखाती है, गाँवों-शहरों में प्रति चौवन मिनट में एक महिला का बलात्कार होता है । नगरों, महानगरों, देश की राजधानी में महिलाओँ से छेड़खानी, देह शोषण के किस्से आम बात है । कमोबेश समाज में महिला शोषण की पूरी कड़ी है । अंधविश्वासी और गरीब लालन- पालन के डर, धनवान पुत्र की चाह में लिंग परीक्षण करवाकर महिला शोषण की नींव रखते है । बच्चियों को घरेलू काम के लिए अशिक्षित रखा जाता है । युवतियों को दहेज का दानव परेशान करता है । समाज में विकलांग मानसिकता वाले महिलाओँ से घर-परिवार, जाति- समाज और कार्यस्थानो पर ऊँच-नीच, भेदभाव और शोषण करते है । समाज में अनाचार, अनैतिकता का मेला है । पुरुषो का चरित्र कुछ ढीला है । इधर सरकार का नजरिया भी लचीला है । अतः समाज नारी सशक्तिकरण का प्रयास करे । आज मानवीय संस्कारवान और आत्मनिर्भर महिलाएँ ही महिला शोषण से महिलाओं को निजात दिला सकती है ।

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