नशा एक अभिशाप
नशा एक अभिशाप है । यह एक ऐसी बुराई है, जिससे इंसान का अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो
जाता है । नशे के लिए समाज में शराब, गांजा, भांग, अफीम, जर्दा, गुटखा, तम्बाकु और धूम्रपान (बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, चिलम) सहित चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर जैसे घातक मादक दवाओं और पदार्थों का उपयोग किया
जा रहा है । इन जहरीले और नशीले पदार्थों के सेवन से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक हानि पहुंचने के साथ ही इससे सामाजिक
वातावरण भी प्रदूषित होता ही है साथ ही स्वयं और परिवार की सामाजिक स्थिति को भी
भारी नुकसान पहुंचाता है । नशे के आदी व्यक्ति को समाज में हेय की दृष्टि से देखा
जाता है । नशे करने वाला व्यक्ति परिवार के लिए बोझ स्वरुप हो जाता है, उसकी समाज एवं राष्ट्र के लिया उपादेयता शून्य हो जाती है ।
वह नशे से अपराध की ओर अग्रसर हो जाता है तथा शांतिपूर्ण समाज के लिए अभिशाप बन
जाता है । नशा अब एक अन्तराष्ट्रीय विकराल समस्या बन गयी है । दुर्व्यसन से आज
स्कूल जाने वाले छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्ग और विशेषकर युवा वर्ग बुरी
तरह प्रभावित हो रहे है । इस अभिशाप से समय रहते मुक्ति पा लेने में ही मानव समाज
की भलाई है । जो इसके चंगुल में फंस गया वह स्वयं तो बर्बाद होता ही है इसके साथ
ही साथ उसका परिवार भी बर्बाद हो जाता है । आज कल अक्सर ये देखा जा रहा है कि युवा
वर्ग इसकी चपेट में दिनों-दिन आ रहा है वह तरह-तरह के नशे जैसे- तम्बाकू, गुटखा, बीडी, सिगरेट और शराब के चंगुल में फंसता जा रहा है । जिसके कारण
उनका कैरियर चौपट हो रहा है । दुर्भाग्य है कि आजकल नौजवान शराब और धूम्रपान को
फैशन और शौक के चक्कर में अपना लेते हैं । इन सभी मादक प्रदार्थों के सेवन का
प्रचलन किसी भी स्थिति में किसी भी सभ्य समाज के लिए वर्जनीय होना चाहिए ।
समाज में पनप रहे विभिन्न प्रकार के
अपराधों का एक कारण नशा भी है । नशे की प्रवृत्ति में वृध्दि के साथ-साथ अपराधियों
की संख्या में भी वृध्दि हो रही है । नशा किसी भी प्रकार का हो उससे शरीर को भारी
नुकसान होता है, पर आजकल के नवयुवक शराब और धूम्रपान को फैशन और शौक के लिए
उपयोग में ला रहे हैं । यहां तक की दूसरे व्यक्तियों द्वारा ध्रूमपान करने से भी
सामने वाले व्यक्ति के फेफड़ों में कैंसर और अन्य रोग हो सकते हैं । इसलिए न खुद
धूम्रपान करें और न ही किसी को करने दें । कोकीन, चरस, अफीम ऐसे उत्तेजना लाने वाले पदार्थ है जिसके प्रभाव में
व्यक्ति अपराध कर बैठता है । इनके सेवन से व्यक्ति पागल तथा सुप्तावस्था में हो
जाता है । इसी तरह तंबाखू के सेवन से तपेदिक, निमोनिया और सांस की
बीमारियों सहित मुख फेफडे और गुर्दे में कैंसर होने की संभावनाएं रहती हैं । इससे
चक्रीय हृदय रोग और उच्च रक्तचाप की शिकायत भी रहती है ।
डॉक्टरों का कहना है कि शराब के सेवन
से पेट और लीवर खराब होते हैं । इससे मुख में छाले पड़ सकते हैं और पेट का कैंसर हो
सकता है । पेट की सतही नलियों और रेशों पर इसका असर होता है, यह पेट की अंतड़ियों को नुकसान पहुंचाती है । इससे अल्सर भी
होता है, जिससे गले और पेट को जोड़ने वाली नली में सूजन आ जाती है और
बाद में कैंसर भी हो सकता है । इसी तरह गांजा और भांग जैसे पदार्थ इंसान के दिमाग
पर बुरा असर डालते हैं । इन सभी मादक द्रव्यों से मानव स्वास्थ्य को नुकसान
पहुंचने के साथ-साथ समाज, परिवार और देश को भी गंभीर
हानि सहन करनी पड़ती है । किसी भी देश का विकास उसके नागरिकों के स्वास्थ्य पर
निर्भर करता है, लेकिन नशे की बुराई के कारण यदि मानव स्वास्थ्य खराब होगा तो
देश का भी विकास नहीं हो सकता । नशा एक ऐसी बुरी आदत है जो व्यक्ति को तन-मन-धन से
खोखला कर देता है । इससे व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और उसके
परिवार की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जाती है । इस बुराई को समाप्त करने के
लिए शासन के साथ ही समाज के हर तबके को आगे आना होगा । यह चिंतनीय है कि जबसे
बाजार में गुटका पाउच का प्रचलन हुआ है, तबसे नशे की प्रवृत्ति बढ़ती
जा रही है । आज बच्चे से लेकर बुजुर्ग भी गुटका पाउच के चपेट में है ।
-: जरा
इस ओर ध्यान देवें:-
:
- शराब पीने वाले व्यक्ति का 50/- रु.
रोज का खर्च मानकर चलें, तो एक महीने का 1,500/- रु. व सालभर में 18,000/- रु.
होते हैं । एक व्यक्ति अपने जीवन भर में 50 वर्ष शराब का सेवन करता है तो
9,00,000/- रु. (नौ लाख) फिजूल खर्च कर देता है ।
:
- सिर्फ एक साल की बचत 18000/- रु. पोस्ट ऑफिस में फिक्स
(किसान विकास-पत्र) जमा कराने से 42 वर्ष, 11 महीने तक रिन्यू कराते रहने पर यह रकम 5,76,000/- रु जमा हो जाती है । जो आपकी जिन्दगी के लिए पेन्शन या
बच्चों की शिक्षा के काम आ सकती है ।
:
- बीड़ी पीने वाले व्यक्ति का बीड़ी व माचिस का कम से कम रोजाना
का खर्च 10/- रु माने, तो एक महिने में 300/- रु सालभर में 3,600/- रु होते है । 50 वर्ष का हिसाब लगावें तो 1,80,000/- रु फिजूल खर्च में राख हो जाते है तथा कैंसर को न्योता! देते
है ।
:
- गुजरात में तम्बाकू व गूटखे के सेवन से 32 हजार व्यक्ति हर वर्ष मरते है, कारण
है, कैंसर ।
:
- अकेले भारत में एक दिन में 11 करोड़
की सिगरेट पी जाते है । इस तरह एक वर्ष में 50 अरब रु का धुंआ हो जाता है
तथा कैंसर को निमंत्रण!
ये कैसी विडम्बना है कि सामाजिक हितो
से सम्बन्धित तमाम मुद्दो व उससे जुड़े नकारात्मक प्रभावो पर हमारी सरकारे व
सामाजिक सँगठन बहुत जोर शोर से आवाज उठाते हुए कुछ मसलो पर आन्दोलन तक छेड़ देते है
परन्तु आये दिन इस तरह की होने वाली घटनाओ पर कभी भी कोई सामाजिक संगठन या
राजनीतिक दल न आवाज उठाते है और न ही इस गम्भीर समस्या के निदान की ब्रहद स्तर पर
कोई पहल करते है । कुछ जागरुक व जिम्मेवार नागरिक स्थानीय स्तर पर कही कही कुछ
थोड़े प्रयास जरुर करते रहते है लेकिन वे इस बुराई को जड़ से मिटाने मे कभी भी पूर्ण
समर्थ नही हो पाते ।
सबसे पहले हमे शराब से होने वाले
सामाजिक दुःष्प्रभाव व उससे होने वाले धन जन की हानि के विषय मे विचार करना चाहिए
। शराब का सेवन विभिन्न प्रकार से समाज के विभिन्न प्रकार के लोगों द्वारा किया
जाता रहा है कुछ लोगों के लिए शराब का सेवन अपनी सोसाइटी मे दिखावे के लिए किया
जाता है ऐसे लोग अच्छे ब्राण्ड की शराब का सेवन करते है तथा दिन मे किसी एक समय या
फिर कभी कभी कुछ अवसरों पर करते है । आर्थिक रुप से सुद्रढ़ ये वर्ग सिर्फ मौज
मस्ती के लिए ऐसा करते है । मध्यमवर्गीय व निम्नवर्गीय लोगों के लिए मधपान करने के
अनेको कारण होते है,
जिनके विषय मे प्रायः हम सभी जानते है
कुछ लोग शौकिया पीने लगते है तो कुछ लोग संगत के असर से । कुछ लोग सीमित व सँतुलित
रहते हुए समाज मे अपनी इस आदत को छिपाये रखते है तो कुछ लोग अतिरेकता मे बहकते हुए
स्वच्छन्द हो जाते है ऐसे लोग एक बार जब सामाजिक मर्यादा की सीमाओ का उल्लघन कर
देते है तो फिर वे समाज की मुख्यधारा से कटते चले जाते है ।
शौकिया तौर पर लती हुए लोग जब आर्थिक
रूप से कमजोर हो जाते है तो स्थिति भयावह रुप ले लेती है खुद का रोजगार तो
प्रभावित होता ही है प्राइवेट फाइनेन्सरो के जाल मे फँस कर कर्जदार तक हो जाते है
और तब उनका ये शराब रुपी नशे का “रोग ” गम, उलझन व परेशानी से मुक्ति
पाने की “दवा” भी बन जाता है । इस अवस्था मे
ऐसे लोग गहरे अँधियारे मे धँसते चले जाते है । उन्हे शराब मे ही हर समस्या का
समाधान दिखायी देता है । ऐसे मुश्किल क्षणो मे जब कोई करीबी उन्हे समझाने बुझाने व
सुधारने के अतिरिक्त प्रयास करता है तो अक्सर उन्नाव जैसी घटना हो जाती है ।
ऐसे लोगो पर समाज का दखल व असर नही
होता क्योकि अक्सर लोगो के समझाने पर ये लोग सिर्फ एक ही जुमले का प्रयोग करते है ,” तुम्हारे बाप का पीते है क्या ” और तब हर स्वाभिमानी व्यक्ति ऐसे लोगो से दूर रहने मे ही
अपनी भलाई समझता है । इन परिस्थितयो मे भुक्तभोगी परिवार पूरे समाज से अलग थलग पड़
जाता है कोई उनका दुःख सुनने वाला नही होता । निकट रिश्तेदार आखिर कितने दिनो तक
करीब रहते हुए उनकी मदद कर सकते है ।
सबसे खराब स्थिति उन बच्चो की होती है
जो बालिग नही होते,
माँ बाप की रोज की किच किच का उनके
अर्न्तमन मे बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है ,ऐसे बच्चे मानसिक रुप से अन्य
बच्चो की अपेक्षा पिछड़ जाते है घर का अच्छा माहौल न मिलने से उनमे दब्बूपन आ जाता
है और वे हमेशा डरे डरे से रहते है अपने सहपाठियो से खुलकर बात नही कर पाते शिक्षक
के समक्ष अपरोधबोध से ग्रसित व सहमे सहमे रहते है एक अँजान डर के कारण पढ़ा लिखा
कुछ भी पल्ले नही पड़ता, हम हमारा समाज व सरकारे क्या
कभी ऐसे लोगो के दुःख दर्द व मानवाधिकार से सम्बन्धित विषयो पर गौर करता है या फिर
गौर करेगा ?
मेरा तो शासन और प्रशाशन से ये अनुरोध
है कि आखिर हम पूर्ण शराब बँदी क्यो नही लागू करते, जिस
वस्तु से हमारा समाज दिन प्रतिदिन विषैला होता जा रहा हो उसका क्यो न हम पूर्ण
तिलाँजलि कर दे कुछ गरीब परिवारो की जड़ो को खोखला करके हम अमीरो को और अमीर करके
क्या हासिल करना चाहते है । अमीर व सँम्पन्न लोग ऐसा नशा खुद की कमाई से न करके
इधर उधर के पैसो से करते है जब कि आम आदमी अपने खून पसीने के पैसो व उसके पश्चात
जर जमीन बेँच कर नशा करते है और जब वह भी नही होता तो आम नागरिको के यहाँ लूटपाट
करके समाज मे और विषम स्थिति पैदा करते रहते है ।
किसी भी तरह के नशे से मुक्ति के लिए
सिर्फ एक ही उपाय है वह है संयम वैसे तो संयम कई समस्याओं का समाधान है लेकिन जहां
तक नशामुक्ति का सवाल है संयम से बेहतर और कोई दूसरा विकल्प नहीं है हाँ सेल्फ
मोटिवेशन भी नशामुक्ति में बेहद कारगर है या फिर किसी को मोटिवेट करके या किसी के
द्वारा मोटिवेट होके भी नशे से मुक्त हुआ जा सकता है लेकिन यदि तम्बाकू का नशा
करने वाला यदि संयम अपनाए तो इस पर जीत हासिल कर सकता है जब कभी तम्बाकू का सेवन
करने की तीव्र इच्छा हो तो संयम के साथ अपना ध्यान किसी अन्य काम में लगा लें
ज़्यादातर तम्बाकू को भुलाने की कोशिश करें वास्तव में यदि व्यक्ति हितों के प्रति
जागरुक हैं तो वह किसी भी नशे की चपेट में आ ही नहीं सकता और यदि आ भी जाए तो थोडा
सा संयम और सेल्फ मोटिवेशन उसे इस धीमे ज़हर से मुक्त कर सकता है । तम्बाकू और
इसके घातक परिणामो से हम अपने करीबी और अपने मित्रों को परिचित करायें यदि कोई
आपका करीबी तम्बाकू या किसी नशे की लत का शिकार है तो उसे मोटिवेट करके उसे संयम
का रास्ता बताएं और नशे से मुक्त होने में उसकी मदद करें ।
व्यसनों से मुक्ति पाने के लिए नशे
करने वाले साथियों से अधिक से अधिक दूर रहें ।, मेहमानों
का स्वागत नशे से न करें । घर में या जेब में बीड़ी-सिगरेट न रखें ।, बच्चों के हाथ बाजार से नशीली वस्तुएं न मंगवाएं, स्वयं को किसी न किसी रचनात्मक कार्य में व्यस्त रखें ।, इसके अपने दोस्तों और पारिवारिक डॉक्टर की भी मदद लें ।, नशे से जुड़ी चीजों को दूर रखें । सबसे खास़ बात इस धीमे जहर
के सेवन न करने के प्रति खुद को मोटिवेट करें ।
नशा नाश की जड़ है । नशा हर बुराई की
जड़ है । इससे बचकर रहने में ही भलाई है । इन पदार्थों से छुटकारा दिलाने के लिए
पीड़ित व्यक्तियों का उपचार आवश्यक है । इस दिशा में शासन के द्वारा जिला स्तर पर
नशामुक्ति केंद्र स्थापित किए गए हैं । इन केंद्रों में मादक द्रव्य अथवा मादक
पदार्थों का सेवन करने वाले व्यक्तियों को छुटकारा दिलाने के लिए नि:शुल्क परामर्श
सहित उपचार किए जाते हैं । राज्य सरकार द्वारा विभिन्न सूचना तंत्रों के माध्यम से
नशापान के विरूध्द लोगों में जनजागरूकता लाई जा रही है । राज्य के विभिन्न
महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थानों में नशा करने से होने वाले हानि को प्रदर्शित करते
हुए होर्डिंग्स लगाए गए हैं । नशे के दुष्प्रभावों के प्रति लोगों को जागरूक करने
के लिए प्रदेश में जनसहभागिता से रैली, प्रदर्शनी, प्रतियोगिताओं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और
परिचर्चा आदि के आयोजन के साथ ही नशे के दुष्परिणामों को दर्शाने वाली पाम्पलेट, ब्रोसर आदि वितरित किए जा रहे हैं । नशामुक्ति के लिए 30 जनवरी को नशामुक्ति संकल्प और शपथ दिवस के रूप में मनाया
जाता है । इसी प्रकार 31 मई अंतर्राष्ट्रीय धूम्रपान
निषेध दिवस, 26 जून को 'अन्तर्राष्ट्रीय नशा निवारण
दिवस', 2 से 8 अक्टूबर तक मद्यनिषेध सप्ताह
और 18 दिसम्बर को मद्य निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है । पर
नशे को जड़ से मिटाने के लिए हमें हर दिवस को नशामुक्ति दिवस के रूप में मनाना
चाहिए ।
एक पूर्ण नशामुक्त व्यक्ति अपने
परिवार, समाज एवं राष्ट्र की सर्वाधिक सेवा कर सकता है और राष्ट्र
तथा समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है । अंत में नशा करने वालों से बामने की ये
गुजारिश है कि अपने को छोड़कर एक अपने परिवार, माता, पिता, पत्नी और बच्चों का ख्याल
रखते हुए ये सोचना होगा कि कल अगर आपको कुछ हो जाता है तो उनको कितना कष्ट होगा जो
पूरी तरह आप पर ही आश्रित हैं । अगर आपको उनसे वास्तव में प्यार हैं । तो आपके
परिवार वालों को ये न सुनना पड़े कि आप तो कुछ दिन के ही मेहमान हैं । आपका इलाज
संभव नहीं है । आपके परिवार वाले डॉक्टर से पूछते हैं कि क्या ऑपरेशन से भी ठीक
नहीं होगा ? तो डॉक्टर का जवाब आता है कि कहाँ-कहाँ ऑपरेशन करेंगे पूरा
शरीर खोखला हो गया है । आइये प्रण करें कि जहाँ तक संभव होगा लोगों को नशे के सेवन
करने से रोकेंगे । केवल और केवल व्यसन मुक्त व्यक्ति ही अच्छे समाज की रचना कर
सकता है ।
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